बुधवार, 27 मार्च 2013



                 बेदर्द महबूबा
जब अपनी महबूबा को हमने , फूल में लहू लगा कर भेट किया ,
उस पगली ने यारों , दाग समझ के फेंक दिया,
जीवन में मेरे , कष्ट बहुत है ,
एक अनाथ , भूखे बच्चे ने ,ये भ्रम भी मेरा तोड़ दिया ,
और अब्बू के डर से पगली ने, भय्या हमको बोल दिया,
उस दिन से यारों हमने गम पर आंसू टपकाना छोड़ दिया ||

जिसके खातिर मैंने यारों , माँ का अंचल छोड़ा था ,
बाबूजी के कहने पर, घर की गली में जाना छोड़ा था ,
वो आकर मुझसे कहती है –
के बिन पैसे इस प्रजातंत्र में ,प्रजा भूखे मर जाती है ,
और अच्छे-अच्छे नेताओं की, सत्ता भी गिर जाती है ,
बिन दहेज़ की दुल्हन , सूली पर लटका दी जाती है ,
इस कारण मेरे आशिक मैंने , तेरा दामन छोड़ दिया ,
एक रहीस दौलत वाले से, मैंने रिश्ता जोड़ लिया ,
और तेरे बारे में पूछा तो तुझको भैय्या बोल दिया ,
उस दिन से यारों हमने गम पर, आंसू टपकाना छोड़ दिया ||

वो दौलत में इतनी लिप्त हुई ,
उसे क्या समझाऊ मैं ,
मेरी दिल में रहती है, उसे कैसे दिखलाऊ मैं ???
उसका दोष नहीं है यारों , तुमको मैं बतलाता हूँ ,
दौलत क्या होती है यारों , उसको मैं समझाता हूँ –
  बिन बारिश किसान से पूछो, के दौलत क्या है ??
  बिन बेटे धनवान से पूछो, के दौलत क्या है ??
  बिन माँ के इंसान से पूछो, के दौलत क्या है ??
  सीमाओ पर लड़ते उन जवान से पूछो, के दौलत क्या है ??
  बिन डिग्री विद्वान से पूछो, के दौलत क्या है ??
  और बिन श्रीराम हनुमान से पूछो, के दौलत क्या है ??
  जिस दिन पगली ने इश्क को, पैसे से मेरे तोल दिया,
मगरूर बहुत हैं हमभी , उनकी गली में जाना छोड़ दिया ,
और महबूबा के गम पर यूँ आंसू टपकाना छोड़ दिया ||

  

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