जब से उनको देखा है
जब से उनको देखा है , खोया खोया रहता हूँ ,
चढ़ गया नशा, अब इश्क का ,
के दिखता हूँ पूरा –पूरा , पर आधा-आधा रहता हूँ .
घर बार सभी अब छोड़ कर, मेखानो में सोया रहता हूँ ,
जब से उनको देखा है , खोया खोया रहता हूँ ||
वो छत पर आना उनका , वो देखकर मुझको राहों में ,
नज़रें झुकाना उनका ,
वो खुली हवा में दौड़ कर , दुप्पट्टा लहराना उनका ,
हाय.... केहर सा ढाता है , जुल्फें उठाना उनका ,
इन बातों को अब सोच-सोच कर डूबा-डूबा रहता हूँ ,
जब से उनको देखा है , खोया खोया रहता हूँ ||
मैं जब भी मिलने जाता हूँ , वो बिजली सी चल जाती है,
मैं प्यासा-प्यासा रहता हूँ, वो बादल सी छा जाती है ,
वो हवा है चंचल सी , इतराती है, बलखाती है ,
वो दरिया है , मैं समंदर हूँ , रोज़ सपनो में मिलने मुझसे आती है ,
और मुझमे ही मिल जाती है ,
इसलिए रात तो छोड़ो, दिन में भी मैं, सोया-सोया रहता हूँ ,
जब से उनको देखा है , खोया खोया रहता हूँ ||
मैं तो नशे में चूर हुआ ,
अब होश कहाँ से पाउँगा ??
टूटी – फूटी कश्ती हूँ, कैसे लहरों से टकराउंगा ??
उनके कदमो को चूमता, उनके घर की चौखट का, मैं पत्थर बन जाऊंगा , अँधेरा हूँ ,
रात में कुछ इस कदर छा जाऊंगा ,
सच कहता हूँ यारों , उस बेदर्द महबूब पर फनाह हो जाऊंगा ,
मैं पंझी हूँ , खुले आसमान का , अब पिंजरे में बंधा-बंधा सा रहता हूँ ,
जब से उनको देखा है , खोया खोया रहता हूँ ||
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