आतंकवाद
बुझ गया नन्हा दिया , ऐसा उठा तूफ़ान है
आतंक की ज्वालामुखी में , जल रहा इंसान है
दरिया बह रही है खून की , बिन नाथ के संतान है ,
इंसान रूपी दैत्य से , अब डर रहा भगवान है ||
चल रही तलवार है , न हाथ में अब ढाल है ,
सारी धरा को जकड़े हुए , एक सर्प रूपी काल है ,
माँ –बाप को भी मार दे, मानव का ऐसा
हाल है ,
खून से लथ-पथ हैं बेटे , अब फेलता
शमशान है ,
इंसान रूपी दैत्य से , अब डर रहा भगवान है ||
खेल लो होली ज़रा , ये खून की बरसात है
जीत जातें हैं दरिन्दे , मानव नहीं जजों साथ है
हो रही आकाशवाणी , ये महाविनाश की शुरुआत है
मानवता का अब , आँचल भी बेचता इन्सान है ,
इंसान रूपी दैत्य से , अब डर रहा भगवान है ||
देखलो ये खूनी मंज़र , आसमां भी लाल है,
सब देखते बेबस खड़े हैं , प्रचंड महाकाल है ,
कौन आएगा ?? लड़ेगा ?? सब पूछते सवाल है ,
मोह के इन दलदलों में, फंस गया इंसान है ,
मैं कफ़न बंधे चल दिया हूँ , धरती माँ मेरी परेशान है ,
इंसान रूपी दैत्य से , अब डर रहा भगवान है ||
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