बुधवार, 27 मार्च 2013


                     मृगनयनी 
वो मृगनयनी इस धरती पर कोहराम मचाने आई है,
अपने अधरों से आशिक को, वो जाम पिलाने आई है,
उसके आशिक कहते हैं , सबके दिल में वो बस जाती है,
एक नागिन है, डंस जाती है ,
वो अपने आँचल में, सूरज को आज छुपाने आई है,
वो मृगनयनी इस धरती पर कोहराम मचाने आई है ||

यूपी – बिहार जो लूट चली ,
और मुन्नी बन बदनाम हुई,
शिला है यारों, वो हर दिल पर छाने आई है,
बिजली बन कर वो घर-घर की डिबिया भी बुझाने आई है,
वो मृगनयनी इस धरती पर कोहराम मचाने आई है ||

मैंने जाके पूछा उनसे, नाम ज़रा बतलाओ तुम,
यहाँ-वहां तो घूम रही हो, कभी घर मेरे भी आओ तुम,
मैं तनहा-तनहा रहता हूँ ,
चलो संग मेरे रह जाओ तुम ,
वो कहती है अपनी सांसो से धरकन की धक्-धक् को बढ़ाने आई है,
वो मृगनयनी इस धरती पर, कोहराम मचाने आई है ||

राहों में जब चलती है, यारों मन भटका वो देती है,
सात जनम जो न उतरे , ऐसा नशा कर देती है,
जबसे उसको देखा हमने , घर पर जाना छोड़ दिया,
महबूबा के गम में यूँ, आंसू टपकाना छोड़ दिया,
वो कहती है के वसुधा पर , वो प्रेम बढाने आई है,
हिन्दू-मुस्लिम और जात-पात का भेद मिटाने आई है,
जो उसके दर पर जाता है, वो उसका ही हो जाता है ,
वो एक रस की दरिया है , सबकी प्यास बुझाने आई है,
वो मृगनयनी इस धरती पर कोहराम मचाने आई है ||




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