बुधवार, 7 नवंबर 2012

मुन्ना : एक दर्पण


                           दरवाजे की ओट से     अनसुनी कहानियां
पूरा गाँव  नींद की चादर ओढ़े , कहीं खो सा गया था | चारों तरफ घने अँधेरे और सन्नाटे के बीच एक आवाज सुनाई दी  –“ सो जा मुन्ना बहुत रात हो गयी है और डीबिया में तेल भी नहीं बचा है , सुबह बाबूजी के साथ खेत भी जाना पड़ेगा “| “नहीं माँ श्याम कल अपनी गणित की किताब ले लेगा तू सो जा माँ मुझे तंग न कर “ और एक बार फिर मुन्ना सवालों में मदमस्त हो गया | मुन्ना घर की आर्थिक तंगी को समझता था पर वो हमेशा खामोश रहता जैसे समंदर, सैलाब के आने से पहले शांत हो जाता है | वो अपने अटूट विश्वास एवं संघर्ष की रोशनी के तले खुद को जलाता रहा और परिणाम सबके सामने था , दसवी परीक्षा के परिणाम सामने थे | ”अरे चुनमुन बाबु मुन्ना ने तो कमाल ही कर दिया पूरे जिले में टॉप किया है , देखिये- देखिये अखबार में फोटो भी आई है” – गाँव का एक व्यक्ति दौड़ा -दौड़ा आया | मुन्ना ने पिता के चेहरे पर काफी दिनों बाद हंसी देखी, पर आँखों में आंसूं  भी थे, कहने के लिए ये आंसू ख़ुशी के जरूर थे पर, चुनमुन बाबू अपनी बेबसी को मुन्ना से छुपा न सके | उस रात मुन्ना ने पिता को एक ख़त लिखा –“ बाबूजी मैं जानता हूँ के आप परेशान हैं , पर आपका संघर्ष मुझे और शक्ति देता है, मैं जानता हू कल आप मुझे पढ़ाने के लिए  बचा एक खेत भी बेच देंगे पर इसकी जरूरत नहीं है, इतना ही कहूँगा मैं जब लौटूंगा तब आपकी आँखों से बेबसी के आँसू नहीं गिरेंगे “ | मुन्ना  ने “पटना साइंस कॉलेज“ में दाखिला लिया और वहां वो प्रोफेस्सर एच. सी. वर्मा  के चहेते विद्यार्थी में से था , कौन जानता था लालटेन में पढने वाली आँखें कितने बड़े सपने संजोये हुए थे , मुन्ना का दाखिला  I.I.T   दिल्ली में हुआ  पर छह महीने बाद ही मुन्ना ने कॉलेज जाना छोड़ दिया , वो आज भी पिता के बेबस आंखों को देखता था , घर गए तीन साल होने को थे | पर किस्मत और मुन्ना दोनों को कुछ और ही मंजूर था वो दिल्ली के नेहरु विहार में टयूसन पढ़ाने लगा और I.A.S की तैयारी में लग गया , लेकिन दो बार असफल रहने के बाद भी मुन्ना ने १० साल बाद पिता को ख़त में लिखा के मैं बिलकुल ठीक हूँ और बहुत जल्द आ रहा हूँ, इस बीच वो कभी रोया नहीं क्योंकि उसे तो खुले आसमान में एक उंमुक्त उड़ान भरनी थी| पर इस बार तो मुन्ना को अफ़सर बनना ही था क्योंकि पिता सपने में आकर कहते “बेटा तुमसे मिलना है” | I.A.S  अफ़सर बनकर मुन्ना १२ सालों बाद अपने घर लौटा , लाल बत्ती से चमकती गाड़ी पूरे गाँव वालों को हैरान कर रही थी | मुन्ना बहुत खुश था, उसकी गाड़ी के पीछे मानो पूरा गाँव उमड़ पड़ा हो | मुन्ना माँ – माँ चिल्लाता हुआ घर में घुसा पर कोई बाहर नहीं आया , न माँ , न बाबूजी | लोगों की आँखों से फिसलते आँसू मानो जैसे सब कुछ बयां कर रहे थे | जिन्दगी की भी अजीब विडम्बना है आज हाथों में सूरज कैद था पर जिनके चरणों पे वो सूरज रखना था वो चरण कहीं दूर ओझल हो गए | मुन्ना आज फूट-फूट कर रोने लगा और कहने लगा “मैं हार गया”, उसके लिए तो जैसे सब खत्म सा हो गया, पर मुन्ना के पिता उसपर बहुत फक्र करते होंगे |
ये तो समझ नहीं आता कि मुन्ना जीता या हारा पर इतना जरूर है :
“माँ-बाप के चेहरे पर यूँ मुस्कान खिल जाना, लाजमी था मुन्ना के हाथों में सूरज का कैद हो जाना 
    मुन्ना कह रहा है मैं सह न पाया , चूल्हे पे खाना पकाते रोज, माँ का हाथ जल जाना ||”


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